गीता की ये बातें सुनके बदल जाएगा आपका जीवन

बिना स्वार्थ के कर्म करना चाहिए तभी कर्म के नियमों से मुक्ति मिल सकती है।

एक श्रेष्ठ व्यक्ति तभी बना जा सकता है जब अपनी कमियों का आकलन करा जाए

अपने क्रोध पे नियंत्रण बहुत ज़रूरी है। क्रोध से भ्रम पैदा होता है

अनावश्यक इच्छाओं को नियंत्रण में रखने के लिए मन पर नियंत्रण ज़रूरी है

आत्म मंथन से आत्म ज्ञान मिलता है जिससे अहंकार नष्ट होता है  

कर्म का फल मिलना हमारे हाथ में नहीं परंतु अच्छे कर्म करना है 

सफलता पाने के लिए आवश्यक है कर्म और लोक कल्याण में समन्वय 

आत्म मंथन से ही एक सही और सकारकमक सोच उत्पन्न हो सकती है

अपना काम जारी रखने और दुष्टों पर क़ाबू रखने के लिए कठोरता आवश्यक है 

मनुष्य के बनने में उसके समाज का सबसे अहम योगदान होता है। इसलिए समाज का कल्याण करना चाहिए 

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